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माँ तू बस माँ जैसी है

माँ तू बस माँ जैसी है






माँ मैं तेरीं ममता को, कुछ शब्द समर्पित करना चाहूं,
शब्दकोश में शब्द नहीं वो, जिनसे तेरी महिमा गाऊं।।

पूस माह में धूप बने तू, जेठ की धूप में शीतल छाया,
अगर हाथ सिर पर हो तेरा, पास न आए दुःख का साया।।

तू असीम शक्ति से पूरित, तुझसे सृजित से यह संसार,
तू ममता का सहज रूप है, माँ तू सृष्टि का है उपहार ।।

काम रातदिन करते रहती, कभी न तुझको थकते देखा,
कितने कष्टों को सहती, पर मैं खुश तो तुझे हसते देखा।।


स्वयं तो तू है व्रत रख लेती, पर मैं कभी थोड़ा कम खाऊं,
उस दिन माँ तेरी नज़रों में, मैं दिन भर भूखा रह जाऊं।।

अगर किसी दिन गलती से तू, मुझसे थोड़ा काम कराती,
थका हुआ आज बेटा मेरा, पूरे गांव में फिर बतलाती ।।

लक्षाधिक है अवगुण मुझमें, फिर भी मैं सबसे अच्छा हूं,
तेरी दृष्टि में कोई ना मुझसा, क्योंकि मैं तेरा बच्चा हूं।।

कोई न तुमसा रक्षक है मां, कोई ना तुमसा जीवनदाता,
आश्रय ना तुमसा कोई है , कोई ना तुमसा भाग्यविधाता।।

स्नेह तेरा मैं वर्णित कर दूं, शक्ति नहीं वो मुझमें है माँ,
प्रतिपल मेरे साथ तू रहना, दुनिया मेरी तुझमें है माँ ।।

कैसे कर दूं मैं परिभाषित, तुमको माँ तुम कैसी हो,
पास मेरे उपमान नहीं कुछ, माँ तुम बस माँ जैसी हो।।

-महेश भट्ट



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